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गुरुवार, 29 नवंबर 2007

Bin tere ab koi Chahat nahi

Zindagi ki bhi koi khuwahish nahi

Tum nahi the to Zindagi main kuch kami thi

Ab hoker bhi tum mere nahi

Sab kuch paas hai magar

Ek tu hi to mere paas nahi

Hazaron ne hamain Chaha lekin

Ek tujh hi ko hamari Chahat nahi

Hum tere beghair bhi Jeene ki koshish karenge

Kyun ki ab hamain kisi aur ki zaroorat nahi

Toot jata hoon

bikhar jaata hoon jab bhi sochta hoon
zarra zarra mera jal ke shola ho jaata hai
rom rom mein tees si utthne lagti hai
dil bechaara chup chaap dekhta rehta hai
aur aankhein baadal ban jaati hain
mehsoos karta hoon kuchh armaanon ki
zindaa laashon ko jalaa dena
suntaa hoon unki cheekhon ko kaan bandd karke
bedard se dard ki bedard hasi
mazzakk udaane lagti hai
utthhaati hai ungali meri laachaari ki taraf
aur dhoondh kar sabse zakhmi ragg
use dabaa dabaa kar poochhti hai
yaheen hai na dard...??? aur ye lab bhi bewafaa
apni tabassum ke aagosh mein khoye rehte hain
sard hawaa chheel kar badan ki jeeld ko
jaane kya talaash karti hai
khurach khurach kar ek ek tamanna ko
uski har parat ko teh nikaal kar
usmein chhupe dard ko kheench kar masalti hai
teri yaad jab bhi aati hai
bebass sa mehsoos kartaa hoon
bebass sa mehsoos karta hoon
teri yaad jab bhi aati hai...

Zindagi hai to

Zindagi hai to Khwaab Hai
_Khwaab Hai To Manzilein Hai
____Manzilein Hai To Fasaley Hai
__________Fasaley Hai To Rastey Hai
_________Rastay Hai To Mushkilein Hai
_____________Mushkilein Hai To Hausla Hai
_________________Hausla Hai To Vishawas Hai
______________________Vishvas hai to Paisa hai
________________________Paisa hai to Shohrat hai
__________________________Shohrat hai to Izzat Hai
______________________________Izzat hai to Ladki hai
__________________________Ladki hai to Tension hai
______________________Tension hai to Concern hai
__________________Concern hai to a Khayaal hai
_________________Khayaal hai to Khwaab hai
______________Khawab hai to Growth hai
__________Growth hai to Zindagi hai
______Zindagi hai to khwaab hai
_Matlab duniya Gol Gol hai
Bas ghumnewala chahiye

बुधवार, 28 नवंबर 2007

Jagjit Singh


याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मंज़र भूल गये, उसकी गलियों से जब लौटे अपना भी घर भूल गये
ख़ूब गये परदेस कि अपने दीवार-ओ-दर भूल गये, शीशमहल ने ऐसा घेरा मिट्टी के घर भूल गये
तुझको भी जब अपनी क़समें अपने वादे याद नहीं, हम भी अपने ख़्वाब तेरी आँखों में रखकर भूल गये
मुझको जिन्होने क़त्ल किया है कोई उन्हे बतलाये ”नज़ीर”, मेरी लाश के पहलू में वो अपना ख़न्जर भूल गये


ये जो ज़िन्दगी की किताब है, ये किताब भी क्या खिताब है कहीं एक हसीं सा ख्वाब है, कही जान-लेवा अज़ाब है
कहीं छांव है, कहीं धूप है, कहीं और ही कोई रूप हैकई चेहरे हैं इसमे छिपे हुये, एक अजीब सा ये निकाब है
कहीं खो दिया कहीं पा लिया, कहीं रो लिया कहीं गा लियाकहीं छीन लेती है हर खुशी, कहीं मेहरबान ला-ज़वाब है
कहीं आंसू की है दास्तान, कहीं मुस्कुराहटों का है बयानकहीं बरकतों की हैं बारिशें, कहीं तिशनगी बेहिसाब है
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो,भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी।मग़र मुझको लौटा दो बचपन का सावन,वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी।
मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी,वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी,वो नानी की बातों में परियों का डेरा,वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा,भुलाए नहीं भूल सकता है कोई,वो छोटी-सी रातें वो लम्बी कहानी।
कड़ी धूप में अपने घर से निकलनावो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितली पकड़ना,वो गुड़िया की शादी पे लड़ना-झगड़ना,वो झूलों से गिरना, वो गिर के सँभलना,वो पीपल के पल्लों के प्यारे-से तोहफ़े,वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी।
कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जानाघरौंदे बनाना,बना के मिटाना,वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी,वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी,न दुनिया का ग़म था, न रिश्तों का बंधन,बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िन्दगानी।

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता हैंतेरे आगे चांद पुराना लगता हैं
तिरछे तिरछे तीर नजर के चलते हैंसीधा सीधा दिल पे निशाना लगता हैं
आग का क्या हैं पल दो पल में लगती हैंबुझते बुझते एक ज़माना लगता हैं
सच तो ये हैं फूल का दिल भी छल्ली हैंहसता चेहरा एक बहाना लगता हैं

अपने होठों पर सजाना चाहता हूंआ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूं
कोई आसू तेरे दामन पर गिराकरबूंद को मोती बनाना चाहता हूं
थक गया मैं करते करते याद तुझकोअब तुझे मैं याद आना चाहता हूं
छा रहा हैं सारी बस्ती में अंधेरारोशनी को घर जलाना चाहता हूं
आखरी हिचकी तेरे शानों पे आयेमौत भी मैं शायराना चाहता हूं

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता हैनये परिन्दों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।
जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था,लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।
गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी,लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।
हमने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ़ लिया है,गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है।

Gazals

अपने चेहरे से जो जाहिर है, छुपाये कैसे, तेरी मरजी के मुताबिक नज़र आए कैसे,
घर सजाने का तसबुर तो बहुत बाद का है, पहले यह तय हो के इस घर को बचाए कैसे,
कहकहा आंख का बर्ताव बदल देता है, हँसने वाले तुझे आंसू नज़र आये कैसे,
कोई अपनी ही नज़र से जो हमे देखेगा, एक कतरे को समंदर नज़र आये कैसे,

कभी आंसू कभी खुशी बेची, हम गरीबो ने बेकसी बेची,
चाँद साँसे खरीदने के लिए, रोज़ थोडी सी ज़िंदगी बेची,
जब रुलाने लगे मुझे साये, मैंने उकता के रौशनी बेची,
एक हम थे के बिक गए ख़ुद ही, वरना दुनिया ने दोस्ती बेची,

वो रुलाकर हंस न पाया देर तक, जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक,
भूलना चाहा अगर उसको कभी, और भी वो याद आया देर तक,
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए, माँ ने फिर पानी पकाया देर तक,
गुनगुनाता जा रहा था इक फकीर, धुप रहती है न साया देर तक,

बड़ी नाजुक है ये मंजिल, मोहब्बत का सफर है,

धड़क आहिस्ता से ए दिल, मोहब्बत का सफर है,
कोई सुन ले न ये किस्सा, बहुत डर लगता है,

मगर डरने से क्या हासिल, मोहब्बत का सफर है,
बताना भी नही आसान, छुपाना भी कठिन है,

खुदा अक्सर कदर मुश्किल, मोहब्बत का सफर है,
उजाले दिल के फैले है, चले आओ न जानम,

बहुत ही प्यार के काबिल, मोहब्बत का सफर है,

अब तो घबरा के ये कहते है के मर जायेंगे,

मर के भी चैन ना पाया तो किधर जायेंगे,
लाये जो मस्त है तुरबत पे गुलाबी आँखें,

और अगर कुछ नही दो फूल तो धर जायेंगे,
हम नही वो जो करें खून का दावा तुझसे,

बलकी पूछेगा खुदा भी तो मुकर जायेंगे

Gazals

शाम से आँख में नमी सी है, आज फ़िर आपकी कमी सी है,
दफ़न कर दो हमें की साँस मिले, नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है,
वक्त रहता नहीं कहीं छुपकर, इसकी आदत भी आदमी सी है,
कोई रिश्ता नहीं रहा फ़िर भी, एक तस्लीम लाज़मी सी है,

वो ख़त के पुर्जे उडा रहा था, हवाओं का रूख दिखा रहा था,
कुछ और भी हो गया नुमाया, मैं अपना लिखा मिटा रहा था,
उसी का इमा बदल गया है, कभी जो मेरा खुदा रहा था,
वो एक दिन एक अजनबी को, मेरी कहानी सुना रहा था,
वो उम्र कम कर रहा था मेरी, मैं साल अपने बढ़ा रहा था,


तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जिसको छुपा रहे हो,
आंखो में नमी हँसी लबो पर, क्या हाल है क्या दिखा रहे हो,
बन जायेंगे ज़हर पीते पीते, ये अश्क जो पीते रहे हो,
जिन ज़ख्मों को वक्त भर चला है, तुम क्यूं उन्हें छेड़े जा रहे हो,
रेखाओं का खेल है मुक्क़द्दर, रेखाओं से मात खा रहे हो,

जवाब जिनका नही वो सवाल होते है, जो देखने में नही कुछ, कमाल होते है,
तराश्ता हूँ तुझे जिन में अपने लफ्जों से, बहुत हसीन मेरे वो ख्याल होते है,
हसीन होती है जितनी बला की दो आँखें, उसी बला के उन आंखों में जाल होते हैं,
वह गुनगुनाते हुए, यूँही, जो उठाते है, क़दम कहाँ, वो क़यामत की चाल होते हैं,
झुकी झुकी सी नज़र बेकरार है के नही, दबा दबा सा सही दिल में प्यार है के नही,
तू अपने दिल की जवाँ धडकनों को गिन के बता, मेरी तरह तेरा दिल बेकरार है के नही,
वो पल के जिस में मोहब्बत जवाँ होती है, उस एक पल का तुझे इंतज़ार है के नही,
तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को, तुझे भी अपने पे ये ऐतबार है के नही,

Gazals

मैं न हिंदू न मुसलमान मुझे जीने दो, दोस्ती है मेरा इमान मुझे जीने दो,
कोई एहसान न करो मुझपे तो एहसान होगा, सिर्फ़ इतना करो एहसान मुझे जीने दो,
सबके दूख-दर्द को अपना समझ के जीना, बस यही है मेरा अरमान मुझे जीने दो,
लोग होते हैं जो हैरान मेरे जीने से, लोग होते रहे हैरान मुझे जीने दो,
जिन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं, और क्या जुर्म है पता ही नहीं,
इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं, मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं,
सच घटे या बडे तो सच न रहे, झूठ की कोई इन्तेहा ही नहीं,
जड़ दो चांदी में चाहे सोने में, आइना झूठ बोलता ही नहीं,
शेख़ जी थोड़ी सी पी कर आइये, मए है क्या सही फिर हमें बतलाइए,
आप क्यों हैं सारी दुनिया से जुदा, आप भी दुश्मन मेरे बन जाइए,
क्या है अच्छा क्या बुरा बन्दा नवाज़, आप समझें तो हमें समझाइए,
जाने दिज्ये अक्ल बातें जनाब, दिल की सुनिये और पीते जाइए,

बे सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है, हम खफा कब थे मनाने की ज़रूरत क्या है,
आप के दम से तो दुनिया का भरम है कायम, आप जब हैं तो ज़माने की ज़रूरत क्या है,
तेरा कूचा, तेरा डर, तेरी गली काफी है, बे-ठिकानों को ठिकाने की ज़रूरत क्या है,
दिल से मिलने की तमन्ना ही नहीं जब दिल में, हाथ से हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है,
रंग आंखों के लिए, बू है दिमागों के लिए, फूल को हाथ लगाने की ज़रूरत क्या है
,
वो कौन है, दुनिया में जिसे, गम नहीं होता, किस घर में खुशी होती है, मातम नहीं होता,
ऐसे भी हैं, दुनिया में जिन्हें, गम नहीं होता, एक गम हैं हमारा, जो कभी कम नहीं होता,
क्या सुरमा भरी, आंखों से, आंसू नहीं गिरते, क्या मेहंदी लगे, हाथों से, मातम नहीं होता,
कुछ और भी, होती है, बिगाड़ने की अदाएं, बनने मी सवारने मे, ये आलम नहीं होता

Gazals

झूम के जब रिन्दो ने पिला दी,
शेख़ ने चुपके चुपके दुआ दी,
एक कमी थी ताजमहल में,

हमने तेरी तस्वीर लगा दी,
आपने झूठा वादा करके,

आज हमारी उम्र बढ़ा दी,
तेरी गली में सजदे करके,

हमने इबादतगाह बना दी,


मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा,
आग से आग बुझा फूल खिला जाम उठा,
ऐ मेरे यार तुझे उसकी कसम देता हूँ,

भूल जा शिकवे गिले हाथ मिला जाम उठा,
एक पल भी कभी हो जाता है सदियों जैसा,

देर क्या करना यहाँ हाथ बढ़ा जाम उठा,
प्यार ही प्यार है सब लोग बराबर हैं यहाँ,

मयकदे में कोई छोटा न बड़ा जाम उठा





मेरे क़रीब न आओ के मैं शराबी हूँ,
मेरा शवों जगाओ के मैं शराबी हूँ,
ज़माने भर के निगाहों से गिर चुका हूँ मैं,

नज़र से तुम न गिराओ के मैं शराबी हूँ,
ये अर्ज़ करता हूँ गिर कर खुलुश वालों से,

उठा सको तो उठाओ के मैं शराबी हूँ,
तुम्हारी आँख से भर लूँ सुरूर आंखों में,

नज़र नज़र से मिलाओ के मैं शराबी हूँ,





मुझे गुसा दिखाया जा रहा है, तबस्सुम को दबाया जा रहा है,
वहाँ तक आबरू जब्त-ऐ-गम है, जहाँ तक मुस्कुराया जा रहा है,
दो आलम मैंने छोडे जिसके खातिर, वही दामन छुडाया जा रहा है,
क़रीब आने में है उनको तकल्लुफ, वहीँ से मुस्कुराया जा रहा है,





घर से निकले थे हौसला करके,
लौट आए खुदा खुदा करके,
हमने देखा है तज्रुबा करके,
जिन्दगी तो कभी नही आए,
मौत आए जरा जरा करके,
लोग सुनते रहे दिमाग की बात,
हम चले दिल को रहनुमा करके,
किसने पाया सुकून दुनिया मे,
ज़िन्दगानी का सामना करके,




तेरा चेहरा है आईने जैसा, क्यो न देखू है देखने जैसा,
तुम कहो तो मैं पूछ लू तुमसे, है सवाल एक पूछने जैसा,
दोस्त मिल जायेगे कई लेकिन, न मिलेगा कोई मेरे जैसा,
तुम अचानक मिले थे जब पहले, पल नही है वो भूलने जैसा,







मुझसे बिछड़ के खुश रहते हो, मेरी तरह तुम भी झूठे हो,
इक टहनी पर चाँद टिका था, मैंने ये समझा तुम बैठे हो,
उजले उजले फूल खिले थे, बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो,
मुझ को शाम बता देती है, तुम कैसे कपड़े पहने हो,
तुम तन्हा दुनिया से लडोगे, बच्चों सी बातें करते हो,




दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह, फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह,
मैंने तुझ से चाँद सितारे कब मांगे, रोशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह,
सूरज सी एक चीज़ तो हम सब देख चुके, सचमुच की अब कोई सहर दे या अल्लाह,
या धरती के ज़ख्मों पर मरहम रखदे, या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह,





ऐ खुदा रेत के सेहरा को समंदर कर दे, यह छलकती हुयी आखो को भी पत्थर कर दे,
तुझ को देखा नही, महसूस किया है मैंने, आ किसी दिन मेरे अहसास को पय्कर कर दे,
और कुछ डर मुझे, डरकर नही है लकिन, मेरी चादर मेरे पैरो के, बराबर कर दे,



रिश्ता क्या है तेरा मेरा, मैं हूँ शब और तू है सवेरा,
तू है चाँद सितारों जैसा, मेरी किस्मत घोर अँधेरा,
फूलों जैसे राहें तेरी, काटों जैसा मेरा डेरा,
आता जाता है ये जीवन, पल-दो-पल का रैन बसेरा,




ये तो नही के गम नही, हाँ मेरी आँख नम नही,
तुम भी तो तुम नहीं हो आज, हम भी तो आज हम नही,
अब न खुशी की है खुशी, गम का भी अब तो गम नही,
मौत अगर चेमौत है, मौत से ज़ीस्त कम नही,


Ghulam Ali


चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
बाहज़ारां इज़्तिराब-ओ-सदहज़ारां इश्तियाक
तुझसे वो पहले पहल दिल का लगाना याद है
तुझसे मिलते ही वो कुछ बेबाक हो जाना मेरा
और तेरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है
खींच लेना वो मेरा पर्दे का कोना दफ़्फ़ातन
और दुपट्टे से तेरा वो मुँह छिपाना याद है
जानकर सोता तुझे वो क़सा-ए-पाबोसी मेरा
और तेरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना ना था
सच कहो क्या तुम को भी वो कारखाना याद है
ग़ैर की नज़रों से बचकर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़
वो तेरा चोरीछिपे रातों को आना याद है
आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़
वो तेरा रो-रो के मुझको भी रुलाना याद है
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिये
वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
देखना मुझको जो बर्गश्ता तो सौ सौ नाज़ से
जब मना लेना तो फिर ख़ुद रूठ जाना याद है
चोरी चोरी हम से तुम आकर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है
बेरुख़ी के साथ सुनाना दर्द-ए-दिल की दास्तां
और तेरा हाथों में वो कंगन घुमाना याद है
वक़्त-ए-रुख़सत अलविदा का लफ़्ज़ कहने के लिये
वो तेरे सूखे लबों का थरथराना याद है
बावजूद-ए-इद्दा-ए-इत्तक़ा ‘हसरत’ मुझेआज तक
अहद-ए-हवस का ये फ़साना याद है