यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 28 नवंबर 2007

Gazals

अपने चेहरे से जो जाहिर है, छुपाये कैसे, तेरी मरजी के मुताबिक नज़र आए कैसे,
घर सजाने का तसबुर तो बहुत बाद का है, पहले यह तय हो के इस घर को बचाए कैसे,
कहकहा आंख का बर्ताव बदल देता है, हँसने वाले तुझे आंसू नज़र आये कैसे,
कोई अपनी ही नज़र से जो हमे देखेगा, एक कतरे को समंदर नज़र आये कैसे,

कभी आंसू कभी खुशी बेची, हम गरीबो ने बेकसी बेची,
चाँद साँसे खरीदने के लिए, रोज़ थोडी सी ज़िंदगी बेची,
जब रुलाने लगे मुझे साये, मैंने उकता के रौशनी बेची,
एक हम थे के बिक गए ख़ुद ही, वरना दुनिया ने दोस्ती बेची,

वो रुलाकर हंस न पाया देर तक, जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक,
भूलना चाहा अगर उसको कभी, और भी वो याद आया देर तक,
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए, माँ ने फिर पानी पकाया देर तक,
गुनगुनाता जा रहा था इक फकीर, धुप रहती है न साया देर तक,

बड़ी नाजुक है ये मंजिल, मोहब्बत का सफर है,

धड़क आहिस्ता से ए दिल, मोहब्बत का सफर है,
कोई सुन ले न ये किस्सा, बहुत डर लगता है,

मगर डरने से क्या हासिल, मोहब्बत का सफर है,
बताना भी नही आसान, छुपाना भी कठिन है,

खुदा अक्सर कदर मुश्किल, मोहब्बत का सफर है,
उजाले दिल के फैले है, चले आओ न जानम,

बहुत ही प्यार के काबिल, मोहब्बत का सफर है,

अब तो घबरा के ये कहते है के मर जायेंगे,

मर के भी चैन ना पाया तो किधर जायेंगे,
लाये जो मस्त है तुरबत पे गुलाबी आँखें,

और अगर कुछ नही दो फूल तो धर जायेंगे,
हम नही वो जो करें खून का दावा तुझसे,

बलकी पूछेगा खुदा भी तो मुकर जायेंगे

कोई टिप्पणी नहीं: