याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मंज़र भूल गये, उसकी गलियों से जब लौटे अपना भी घर भूल गये
ख़ूब गये परदेस कि अपने दीवार-ओ-दर भूल गये, शीशमहल ने ऐसा घेरा मिट्टी के घर भूल गये
तुझको भी जब अपनी क़समें अपने वादे याद नहीं, हम भी अपने ख़्वाब तेरी आँखों में रखकर भूल गये
मुझको जिन्होने क़त्ल किया है कोई उन्हे बतलाये ”नज़ीर”, मेरी लाश के पहलू में वो अपना ख़न्जर भूल गये
ये जो ज़िन्दगी की किताब है, ये किताब भी क्या खिताब है कहीं एक हसीं सा ख्वाब है, कही जान-लेवा अज़ाब है
कहीं छांव है, कहीं धूप है, कहीं और ही कोई रूप हैकई चेहरे हैं इसमे छिपे हुये, एक अजीब सा ये निकाब है
कहीं खो दिया कहीं पा लिया, कहीं रो लिया कहीं गा लियाकहीं छीन लेती है हर खुशी, कहीं मेहरबान ला-ज़वाब है
कहीं आंसू की है दास्तान, कहीं मुस्कुराहटों का है बयानकहीं बरकतों की हैं बारिशें, कहीं तिशनगी बेहिसाब है
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो,भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी।मग़र मुझको लौटा दो बचपन का सावन,वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी।
मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी,वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी,वो नानी की बातों में परियों का डेरा,वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा,भुलाए नहीं भूल सकता है कोई,वो छोटी-सी रातें वो लम्बी कहानी।
कड़ी धूप में अपने घर से निकलनावो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितली पकड़ना,वो गुड़िया की शादी पे लड़ना-झगड़ना,वो झूलों से गिरना, वो गिर के सँभलना,वो पीपल के पल्लों के प्यारे-से तोहफ़े,वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी।
कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जानाघरौंदे बनाना,बना के मिटाना,वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी,वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी,न दुनिया का ग़म था, न रिश्तों का बंधन,बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िन्दगानी।
मोहल्ले की सबसे निशानी पुरानी,वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी,वो नानी की बातों में परियों का डेरा,वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा,भुलाए नहीं भूल सकता है कोई,वो छोटी-सी रातें वो लम्बी कहानी।
कड़ी धूप में अपने घर से निकलनावो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितली पकड़ना,वो गुड़िया की शादी पे लड़ना-झगड़ना,वो झूलों से गिरना, वो गिर के सँभलना,वो पीपल के पल्लों के प्यारे-से तोहफ़े,वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी।
कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जानाघरौंदे बनाना,बना के मिटाना,वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी,वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी,न दुनिया का ग़म था, न रिश्तों का बंधन,बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िन्दगानी।
तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता हैंतेरे आगे चांद पुराना लगता हैं
तिरछे तिरछे तीर नजर के चलते हैंसीधा सीधा दिल पे निशाना लगता हैं
आग का क्या हैं पल दो पल में लगती हैंबुझते बुझते एक ज़माना लगता हैं
सच तो ये हैं फूल का दिल भी छल्ली हैंहसता चेहरा एक बहाना लगता हैं
अपने होठों पर सजाना चाहता हूंआ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूं
कोई आसू तेरे दामन पर गिराकरबूंद को मोती बनाना चाहता हूं
थक गया मैं करते करते याद तुझकोअब तुझे मैं याद आना चाहता हूं
छा रहा हैं सारी बस्ती में अंधेरारोशनी को घर जलाना चाहता हूं
आखरी हिचकी तेरे शानों पे आयेमौत भी मैं शायराना चाहता हूं
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता हैनये परिन्दों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।
जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था,लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।
गाँठ अगर पड़ जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी,लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।
हमने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ़ लिया है,गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है।
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